बदायूं जिला अस्पताल के अपहृत फार्मासिस्ट शाकिर अली की हत्या अपहरण वाले दिन यानि 15 अक्टूबर को ही हो चुकी थी। वहीं सदर कोतवाली पुलिस पूरे मामले में शुरूआत से ही बरामदगी की चिंता छोड़ कभी शाकिर के चरित्र पर उंगली उठाती दिखी तो कभी उसे कर्जदार बताकर भगौड़ा साबित करने में लगी रही। जब मोबाइल की तलाश में नदी, पोखर या तालाब में उतरने वाले गोताखोरों का पेमेंट भी परिजनों से कराया गया। ऐसा खुद शाकिर के परिजनों ने घटनाक्रम के खुलासे से दो दिन पहले आरोप लगाया। और तो तालाब खाली कराने के लिए जो इंजन चलाए गए थे उनके डीजल का खर्चा भी पुलिस परिवार वालों से लेकर ही मानी। हालांकि अब हत्या की पुष्टि के बाद परिजन पुलिस कार्रवाई से संतुष्टि जता रहे हैं। फिर चाहें यह डर के कारण हो या कोई और वजह।
