बदांयू,16 जनवरी : बदांयू, बिनावर, उझानी, बिल्सी , सहसवान के कुछ थोक व्यापारी राजस्थान से इन बकरियों को मंगवाकर इन्हें तीन से साढ़े तीन हजार रुपये में छोटे कसाईखाने में बेच देते हैं। नाम ना छापने की शर्त पर एक मीट व्यापारी ने बताया कि राजस्थान में जिन बकरियों के बच्चे नहीं होते और वे बूढ़ी हो जाती हैं, धंधेबाज उन्हीं को मंगाकर गोश्त शहर और आसपास क्षेत्र में खपा रहे हैं।
अगर नानवेज के शौकीन हैं तो जरा सतर्क हो जाइए। धंधेबाज कहीं आपको देसी बकरे की जगह राजस्थान की बूढ़ी बकरियों का गोश्त न बेच दें। ज्यादा मुनाफे के चक्कर में जिले के कुछ गोश्त व्यापारी राजस्थान के बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर, बीकानेर और श्रीगंगानगर समेत अन्य इलाकों से बूढ़ी बकरियों खरीद कर उनका गोश्त जिले में खपा रहे है।
देसी बकरे और बकरियों की तुलना में राजस्थान से आ रही बूढ़ी बकरियों का गोश्त सस्ता है। शहर सहित आसपास के उझानी, सहसवान, बिल्सी में इसका धंधा खूब चढ़ रहा है।
मीट व्यापारी ने बताया कि राजस्थान में जिन बकरियों के बच्चे नहीं होते और वे बूढ़ी हो जाती हैं, धंधेबाज उन्हीं को मंगाकर गोश्त शहर और आसपास खपा रहे हैं। धंधेबाज इसे तीन से साढ़े तीन सौ रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेच देते हैं। इस गोश्त के नुकसान बहुत है। इसे पकाने में काफी वक्त लगता है। इसमें स्वाद भी नहीं होता।
ठीक से नहीं पकने की वजह से यह पाचन तंत्र को नुकसान पहुंचाता है। मीट व्यापारी ने बताया कि देसी बकरे के गोश्त की कीमत 700 से लेकर 800 रुपये किलो तक है। सस्ते के लालच में लोग राजस्थान की बूढ़ी बकरियों का गोश्त खरीद रहे हैं। शहर में कुछ धंधेबाज इन बकरियों को मंगवाते हैं। मीट व्यापारी ने बताया कि ग्राहकों को बकरे का गोश्त खरीदते समय ध्यान देना चाहिए। अक्सर धंधेबाज राजस्थानी बकरी को भी स्थानीय बकरे के गोश्त में मिलाकर खपा देते हैं।-